
🌺 देवी पूजा में कुमकुम का महत्व | Kumkum ka Mahatva | Mereshiv.in
हिंदू धर्म में देवी पूजा का अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली स्थान है। माँ दुर्गा, लक्ष्मी, काली, सरस्वती आदि देवियों की आराधना में जो वस्तु सबसे अधिक पवित्र मानी जाती है, वह है – कुमकुम। इसे सिंदूर, रोली, या रक्तचंदन भी कहा जाता है। यह केवल एक पूजा सामग्री नहीं, बल्कि शक्ति का प्रतीक है।
🪔 कुमकुम क्या है?
कुमकुम हल्दी से तैयार किया गया एक लाल रंग का पावन चूर्ण होता है। इसे विशुद्ध रूप से धार्मिक अनुष्ठानों में प्रयोग किया जाता है। यह देवी की कृपा प्राप्त करने का माध्यम माना जाता है।
🔱 देवी पूजा में कुमकुम का धार्मिक महत्व:
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शक्ति का प्रतीक: कुमकुम का लाल रंग शक्ति, उर्जा, और मां दुर्गा की क्रोधरूप शक्ति का प्रतीक होता है।
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सुहाग का चिह्न: विवाहित स्त्रियां इसे अपने मांग में लगाती हैं, जो मंगलता और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
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आशीर्वाद स्वरूप तिलक: पूजा के बाद भक्तों को कुमकुम का तिलक लगाने से देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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देवी का अभिषेक: कुछ विशेष देवी अनुष्ठानों में, कुमकुम से देवी का अभिषेक भी किया जाता है, जैसे कि कुमकुम अर्चना।
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नवदुर्गा पूजा में विशेष उपयोग: विशेषतः नवरात्रि और कात्यायनी पूजा में कुमकुम का विशेष स्थान होता है।
🏵️ कुमकुम का वैज्ञानिक पक्ष:
कुमकुम में हल्दी और चूने का मिश्रण होता है, जो त्वचा के लिए लाभकारी होता है। इसे तीसरी आंख (अज्ञा चक्र) पर लगाने से ध्यान और मानसिक शक्ति में वृद्धि होती है।
🌼 देवी को कैसे चढ़ाएं कुमकुम?
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साफ हाथों से कुमकुम लेकर देवी को तिलक रूप में अर्पित करें।
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इसे कमल के फूल या बेलपत्र पर रखकर भी चढ़ाया जा सकता है।
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पूजा के बाद सभी श्रद्धालुओं को कुमकुम का तिलक दिया जाता है।
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